लोक देवता बाबा रामदेव जी
जनमानस के लोक देवता बाबा रामदेव जी को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है जो कि संपूर्ण राजस्थान का सबसे बड़ा सांप्रदायिक सौहार्द के मेले के लिए जाना जाता है बाबा के दरबार में सभी समाज के भक्त दरबार में शीश झुकाने आते हैंI गुजरात,मध्य प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान के भक्त चाहे वह हिंदू हो या मुसलमान सभी धर्मों की बाबा के दरबार में भीड़ लगी रहती है बोलो रामसा पीर की जयI
रामसा पीर जी का समाधि स्थल |
यह कहानी बाबा रामदेव जी की है Iयह कथा किंवदंतियों एवं समाज के बुजुर्गों द्वारा कथा का वाचन किया जाता है जिसका यहां पर उल्लेख किया जा रहा है जो इस प्रकार है पंडित मोहन लाल शर्मा वशिष्ठ की पुस्तक से यह संदर्भ लिया गया हैI
बाबा रामदेव जी का जन्म बाड़मेर जिले की शिव तहसील उंडू कश्मीर भगवान श्री कृष्ण अर्थात द्वारकानाथ के आशीर्वाद से राजा अजमल जी के घर में रानी मैणादे के दूसरे पुत्र रत्न के रूप में जन्म लियाI बचपन से ही बाबा ने अपनी बाल-लीलाएं से माता को परचा देना शुरू कर दिए थेI जैसे दूध के बर्तन से दूध का गिरना बाबा के द्वारा उस बर्तन को चूल्हे से नीचे उतारना जिससे सभी बहुत प्रभावित हुए और राजा रानी और दासियों ने जय-जय कार प्रारंभ कर दी और बाबा रामदेव जी को कृष्ण भगवान का अवतार मानने लगे।
कपड़े का घोड़ा आकाश में उड़ने की कहानी
एक बार माता ने दूध पीने को कहा तो कहने लगा पहले घोड़ा मंगा दो नहीं तो मैं दूध नहीं पी लूंगा। राजा अजमल जी ने बालक की जिद पूरी करने के लिए दर्जी से नया घोड़ा बनवाया। दर्जी ने उस घोड़े में पुराने कपड़े भर कर उसको सिल दिया और बाबा रामदेव जी को दिया। उस घोड़े पर सवार हो गए और घोड़ा नाचने लगा और आसमान मैं उड़ने लगा राजा ने दर्जी में कहा आपने क्या जादू किया, क्रोध में राजा ने दर्जी को जेल में डाल दिया। जब रामदेव जी आसमान से नीचे उतरे तो बोले दर्जी घोड़े में पुराने कपड़े क्यों भरे, दर्जी ने कहा प्रभु मुझे माफ करें मुझसे गलती हो गई और माफी मांगने लगे और बाबा ने उनको माफ कर दिया तभी से ही बाबा घोड़े की सवारी करने लगी।
आदू राक्षस और भैरव राक्षस का वध
डाली बाई को राधा का अवतार
रामदेव जी ने अपनी रचना से जब गेंद खोजने जा रहे थे तब पोकरण के पास के जंगलों में एक डाली को कपड़े में बांधकर लटका दिया। और जोर-जोर से राक्षस राक्षस कहकर चिल्लाने लगे तो सभी साथियों उनके पास में आ कर देखा की कपड़े की पटोली मैं रोने की आवाज आ रही है जब उसे खोलकर देखा तो उसमें एक सुंदर कन्या है,जो आगे चलकर शायर नामक संत की बेटी के रूप में जाने लगा और आगे चलकर रामदेव जी का सेविका डाली बाई के नाम से प्रसिद्ध हुए क्योंकि राधा का अवतार मानी जाती है जो हमेशा श्री कृष्ण भगवान के सानिध्य रहती है
मुख्य द्वार |
#रुणिचा की स्थापना
रामदेव जी की बहन सुगना की शादी पूंगलगढ़ के पड़ियारों से कर दी लेकिन रामदेव जी ने हमेशा ऊंच-नीच, भेदभाव, छुआ-छात का विरोध किया करते थे जोकि पुंगल गढ़ के राजा को पसंद नहीं था, इस कारण सुगना को कभी वापस नहीं भेजा। उसके बाद उनकी छोटी बहन लाछोंबाई की शादी पोकरण के राजपूत राठौरों से कर दी लेकिन उसके पति ने बड़ी चालाकी से लाछोंबाई को कन्यादान से पहले यह बात समझा दी की दहेज में केवल पोकरण के गढ़ का कंगूरा मांगना और दहेज में देने के कारण रहने के लिए रामदेव जी ने रुणिचा की स्थापना की और वीरमदेव जी ने वीरमदेवरा की स्थापना की जो आज भी रामदेवरा से 3 किलोमीटर दक्षिण दिशा में मौजूद है जब अजमल जी ने अपना राज पाठ रामदेव जी को सौपना चाहा तो रामदेव जी ने बल्लीनाथ जी के पैरों को छूकर पिता के चरणों पर गिरकर उनका प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया बोले बड़े भाई के होते हुए छोटे भाई को यह शोभा नहीं देता। इस तरह से बाबा ने कई लोगों को अपना परचा दिया। 1.बोहिता के सेठ जहाज को संकट से बचाना 2.बछड़े को जिंदा करना 3.भैरव को मारना
वट वृक्ष |
#रामसापीर की कहानी
बाबा रामदेव जी की प्रसिद्धि चारों तरफ प्रसार होने पर लोगों में हिंदू धर्म के प्रति आस्था बढ़ने लगी जो लोग हिंदू से मुसलमान बन गए थे फिर से हिंदू बनने लगे यह बात मुसलमानों को सहन नहीं हो पाई और उन्होंने बादशाह, पीरों, इस्लाम धर्म के गुरुओं से रामदेव के खिलाफ शिकायत की। और सब पीरों ने विचार किया कि बड़े पंच पीरों को बुलाया जाए नहीं तो इस्लाम धर्म संकट में आ जाएगा। बाबा के चमत्कारों को देखने के लिए पंच पीर स्वयं रामदेव के लिए चल दिए रामदेव जी अपने मित्र स्वराथिया के साथ जंगल में घोड़ा को चरा रहे थे तो उन्होंने देखा कोई पांच पुरुष लंबे चौड़े काठी के इधर आ रहे हैं जिसे देखकर रामदेव जी के मित्र घबरा गए और रामदेव जी से
बोले कि देखो वह कौन आ रहे हैं रामदेव जी ने कहा यह हमारे मेहमान है जो हमारे यहां आए उनका हमें स्वागत करना चाहिए लेकिन उनका मित्र घबराकर चला गया और मां को जाकर बोला कि पंच पीर आए हैं वह बड़े विचित्र हैं इस बात को सुनकर उसकी मां ने उसे कमरे में बंद कर दिया, क्योंकि उनको डर था कि कहीं है झगड़ा ना कर ले इसलिए कमरे में बंद कर दिया, कमरे के अंदर सांप था जिसने उसके मित्र को काट लिया और वह मरणासन्न अवस्था में चला गया। उधर बाबा रामदेव उनसे बात करने लगे जो मक्का से आए थे रामदेव जी से पूछा यहां से रुणिचा कितना दूर है रामदेव जी से मिलना है उन्होंने बोला मैं ही रामदेव और वह पास में गांव , लेकिन पीरों को विश्वास नहीं हुआ अपनी शंका मिटाने के लिए पूछा क्या आप ही रामदेव पीर हो इतना सुनकर रामदेव जी बोले मैं पीर हूं या नहीं यह तो मैं नहीं जानता पर मेरा नाम रामदेव जरूर है फिर पूछा रुणिचा में कोई और रामदेव नाम का पीर रहता है तब बाबा बोले रुणिचा में तो केवल मैं ही रामदेव हूं तब पीरों ने कहा हम तो आपसे धर्म पर चर्चा करने आए थे परंतु आप तो घोड़ा चराने वाले ही हैं तुम धर्म के विषय में क्या जानों तब रामदेव जी बोले ईसा मसीह भी भेड़ चराते थे हजरत मोहम्मद ऊंट रखते थे उनका पालन पोषण करते थे आपने कैसे समझ लिया की घोड़ा रखने वाला धर्म को क्या जाने?काँच चित्रकारी |
राम सरोवर तालाब
एक बार कुछ वक्त रामदेव के दर्शन करने जा रहे थे तो रास्ते में #जंभेश्वर जी( बिश्नोई धर्म के प्रवर्तक) के दर्शन कर लेते हैं तो जंभेश्वर जी ने पूछा कि कहां जा रहे हो बोले बाबा रामदेव के दर्शन के लिए जा रहे हैं तो जंभेश्वर जी ने कहा वह कोई सिद्ध पुरुष थोड़े ही हैं वह तो एक ढोंगी पुरुष है जंभेश्वर जी ने एक घुड़सवार को रामदेव को बुलाने भेजा। रामदेव जी ने अपने मित्र को साथ लेकर अपने घोड़े पर बैठ कर जांभासर पहुंचे उनके आने पर अपने नवनिर्मित तालाब पर जंभेश्वर जी रामदेव को ले गए। प्रभु उनके मन के घमंड को देख कर बोले यह पानी पीने योग्य नहीं है। इस पर जंभेश्वर ने गर्व से कहा यह पानी तो अमृत है। जंभेश्वर ने जब अपने शिष्य से बोला एक बाल्टी पानी लाने को कहा तब बाल्टी को पानी में डुबोकर बाहर निकाला गया तो बाल्टी काली पड़ गई। दूसरे शिष्य से पानी को को पीने के लिए कहा तो उसका मुंह खारा रहा हो गया।यह देख कर जंभेश्वर को महान दुख हुआ तथा मन ही मन पछताने लगा कि मुझे गर्व नहीं करना चाहिए था कुछ समय बाद बाबा रामदेव रुणिचा चले गए वहां जाकर गांव में तालाब बनवाया प्रभु इंद्र की कृपा से खूब वर्षा हुई और तालाब अमृत सामान पानी से भर गया जब जंभेश्वर को पता चला तो हुए तालाब के पानी को खरा करने रुणिचा चल पड़े।
रामसरोवर |
जंभेश्वर गांव से रवाना हुए तो रामदेव जी को मालूम हुआ कि वह क्रोध से भरे हुए आ रहे हैं तब श्री रामदेव जी ने राम सरोवर से पानी की झारी भरी और अपने भाई के सामने गए और कहने लगे जंभेश्वर जी आपको प्यास लगी होगी यह पानी अमृत के समान मीठा है अभी अभी मैं सरोवर से भर कर आया हूं पी कर देखो कितना मीठा है जंभेश्वर जी ने सोचा अब इसे खारा पानी तो नहीं कह सकता क्योंकि रामदेव जी ने से मीठा पानी कह दिया है तब जंभेश्वर ने कहा कि राम सरोवर हमें भी तो दिखा दो इतना सुनते ही रामदेव जी ने जंभेश्वर को तालाब पर ले गए जंभेश्वर बोले यह जल शुद्ध अवश्य पर भाद्रपद माह में आप का मेला भरेगा तब यह तालाब सूख जाएगा रामदेव जी ने उन्हें घुमाते हुए पूर्व दिशा में लाकर अपने भाले गाड़ दिया वहां से जलधारा फूट पड़ी और रामदेव जी ने कहा
परचा_बावड़ी |
परचा_बावड़ी |
रामदेव जी का विवाह अमरकोट जो कि पाकिस्तान में वहां के राजा दल जी सोढ़ा राजा की की पुत्री नेतलदे से किया गया
#मेला
वंशावली |
उसके बाद बाबा बोले अगर यह बात झूठ निकली तो जनता व भक्तों की दृष्टि से तुम गिर जाओगी सब लोग तुम्हारी हंसी करेंगे लेकिन कुछ देर बाद सभी बात सच निकली उसके बाद सेविका डाली बाई ने बाबा से 3 दिन पहले समाधि लेकर अमर हो गई
भाद्र शुक्ल ग्यारस को बाबा अपने माता-पिता बड़े- बूढ़ों को प्रणाम किया श्रीफल लिए समाधि में प्रस्थान करने लगे उनके हाथ में रत्न कटोरा पीतांबर वीरगेड़ियां था। और अंतिम उपदेश दिया की प्रत्येक माह की शुक्ल पक्ष दोज को जो व्यक्ति पाठ पूजा भजन कीर्तन करके हर्ष उल्लास से मनाएगा रात्रि जागरण करेगा उसकी सभी मनोकामना पूर्ण होगी।
0 Comments
Post a Comment
Please do not enter any spam link in the comment box.